मेरे ज्ञानरंजन: हीरालाल नागर
वरिष्ठ कथाकार और ‘पहल’ पत्रिका के यशस्वी संपादक ज्ञानरंजन ने आज जीवन के पचासी वर्ष पूरे कर लिए हैं, समालोचन की तरफ से जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई. इस अवसर पर...
वरिष्ठ कथाकार और ‘पहल’ पत्रिका के यशस्वी संपादक ज्ञानरंजन ने आज जीवन के पचासी वर्ष पूरे कर लिए हैं, समालोचन की तरफ से जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई. इस अवसर पर...
मन्नू भंडारी (3 अप्रैल, 1931-15 नवम्बर, 2021) को देखिये तो महादेवी वर्मा की याद आती थी, वैसी ही सादगी और गरिमा. जीवन-वृत्त और सृजित साहित्य में भी समानताएं तलाशी जा...
धर्म, जाति, समाज, परिवार और लैंगिगता के कारण पीड़ित दलित स्त्रियों की इन आत्मकथाओं से संभव है आप परिचित हों- हर आत्मकथा दर्द की जैसे कोई नदी हो- लाइफ़ ऑफ़...
“अगर तुम अतीत पर पिस्तौल से गोली चलाओगे, तो भविष्य तुम पर तोप से गोले बरसायेगा.’ (अबूतालिब,- रसूल हमज़ातोव, मेरा दाग़िस्तान). अगर कोई अतीत पर गोले बरसाये तो भविष्य क्या...
प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक रामविलास शर्मा बाद में ऋग्वेद के अध्ययन की ओर उन्मुख हुए, इसे कई आलोचक विचलन की तरह देखते हैं, जबकि इसे मूल से भारतीय संस्कृति को समझने...
वरिष्ठ आलोचक रविभूषण अपने लेखन को समकालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक प्रश्नों से जोड़ते चलते हैं. आज रामविलास शर्मा की जन्म तिथि है. इस अवसर पर यह आलेख प्रस्तुत है जो...
प्रेमचंद (31 जुलाई, 1880-8 अक्तूबर 1936) की आज पुण्यतिथि है. प्रेमचंद के लेखन में निर्मित हो रहे आधुनिक भारत की समस्याओं और उसके अंतर-विरोधों की विवेचना मिलती है. अगर वर्तमान...
युवा आलोचक संतोष अर्श इधर समकालीन हिंदी कविताओं पर लिख रहें हैं. कुछ समय पहले कवयित्री मोनिका की कविताओं पर उनका आलेख- ‘मार्क्स की मूँछ से बाल झड़ रहे हैं’...
वरिष्ठ आलोचक विजय बहादुर सिंह ने शास्त्रीय संगीत के साझे घरानों पर लिखे गये रणेंद्र के तीसरे उपन्यास- ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ के बहाने ‘सांस्कृतिक प्रतिरोध’ की आवश्यकता और उपन्यास...
वरिष्ठ मार्क्सवादी आलोचक मैनेजर पाण्डेय आज अस्सी वर्ष के हो गये. उन्हें हिंदी समाज की तरफ से शुभकामनाएं. हिंदी आलोचना की सैद्धांतिकी में उनका महत्वपूर्ण अवदान है, उन्होंने कुछ सार्थक...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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